Saturday 28 April 2012

कल आँखों से

कल आँखों से धुंधला दिखने लगा था, लगा की अब कमजोर होने लगी है
गौर से देखा जब शीशे मैं तो पता चला न जाने क्यूँ आँखें रोने लगी हैं 
आंखें ही हैं कोई बात नहीं सांसों का चलना जरूरी है 
लेकिन तेरी चाहत में साजन सांसें भी अब कम होने लगी हैं 

शुरू कर दिया है

यादों में आना शुरू कर दिया है
यूँही मुस्कुराना शुरू कर दिया है
मेरी धडकनों ने तुझको कसम से
हमदम बुलाना शुरू कर दिया है
 
ठहरना भी तेरे घने टेसुओं का
मेरी जान मुझको हवा सा लगे है
यूँही मेकुराना मुझे देख कर
मेरी जान मुझको दावा सा लगे है
 
पहले मुझे इसकी आदत नहीं थी
अब दिलको मनाना शुरू कर दिया है
मेरी धडकनों ने तुझको कसम से
हमदम बुलाना शुरू कर दिया है
 
तुझे देख कर दिलको रहत है मिलती
तुझे सोच कर ये अब खिलखिलाते
तुझे पा के भी मैं न खो दूं कभी
इसी  एक डर से कम सपने सजाते
 
सपने जो देखे वो हो जाये पूरे
रब से मनाना शुरू कर दिया है
मेरी धडकना ने तुझको कसम से
हमदम बुलाना शुरू कर दिया है
 
ये कविता तो केवल फ़िल्मी अंदाज़ को सोचकर लिखी गयी है इसका वास्तविक जीवन से कोई रिश्ता नहीं है और से कवितायेँ ही आपको प्रमाण देंगी की मैं एक फर्जी इंजिनियर हूँ .

नौकरी बनाम रिश्ते

दोस्तों, नौकरी पाना एक लड़ाई है जिसकी विडम्बना ये है ही सामने आप के अपने होते हैं . जिन दोस्तों के साथ आप ने अपने जीवन का सबसे अच्छा समय बिताया होता है . मैंने भी कुछ ऐसा ही झेला है .आज मैं इस चीज़ का एहसास करता हूँ की रिश्तों के आगे आपकी जरूरतें बड़ी है. नौकरी पाने की ख़ुशी की कोई बराबरी नहीं है आज मैं अन्दर से बहुत संतुष्ट महसूस कर रहा हूँ लेकिन इस वक़्त मुझे आमिर खान की पिक्चर याद आ रही है मैं उस्सको थोड़ा संशोधित करता हों की अपनी नौकरी न लगे तो दुःख होता है लेकिन अगर दोस्त की लग जाये तो और दुःख होता है इस बात का एहसास तब हुआ जब मेरे दोस्तों की नौकरी पहले लग गयी . मैं तो केवल इस बात को जनता हूँ हर किसी के लिए कुछ न कुछ जरूर है करने को और वही उस्सकी नियति
है मतलब डेस्टिनी तो उसका इंतजार करो और वो भी संयम के साथ. दोस्ती से पहले नौकरी नहीं हो सकती किस्सी भी हालात मैं क्योंकि नौकरी २२ साल के बाद मिली और ६० की उम्र तक ही रहेगी लेकिन दोस्त बचन से बने और मरते दम तक रहेगें .

काश मुझे मालूम होता.........

काश मुझे मालूम होता की मौत कब आएगी, कुछ अधूरे जो थे वो काम कर लेता
ज़िन्दगीभर वैसे तो बहुत बदनाम हुआ मरते मरते ही थोडा नाम कर लेता 
बहुत से ऐसे शौख है जो हमेशा छुप छुप के किये, एक बार तो उन्हें सरेआम कर लेता
हमेशा पी है रात से सुबह करने के लिए एक बार तो सुबह से शाम कर लेता
और साकी ने ही हमेशा मेरा जाम भरा है, एक बार तो मैं भी उसका जाम भर लेता
शीला मुन्नी और जलेबी का नाम  तो बहुत लिया, मरते मरते तो एक बार राम राम कर लेता
और जिन माँ बाप ने ज़िन्दगी भर मेरा ब्होझ उठाया उनका भी सर ऊँचा हो कुछ ऐसा काम कर लेता
काश मुझे मालूम होता की मौत कब आएगी कुछ अधूरे जो थे वो काम कर लेता